कुनिहार जंहा विकास की तरफ प्रगतिशील है वैसे वैसे लोगों के लिए सुविधाएं भी बढ़ती जा रही है आज प्रत्येक गांव को सड़कों के साथ जोड़ा गया है परंतु कुछ दुर्लभ क्षेत्र ऐसे भी है जहां अभी तक सड़के नहीं पहुंची। लोगों को घोड़े या खचरों के ऊपर सामान ढोना पड़ता है जिस तरह सड़कों पर गाड़ियां तेजी से भागती है और लोग समय समय पर उसकी सर्विस करवाते रहते हैं। उसी तरह घोड़े व खचरों के पैरों में भी नाल लगाकर सर्विस की जाती है ताकि इनके पैर सामान ढोकर नीचे से ना घीसें व टेढ़े मेंढे रास्तों पर घोड़े तेजी से चल सके।
आज हर गांव हर नुक्कड़ पर गाड़ियों की रिपेयर करने के लिए दुकानें खुल गई हैं परंतु घोड़े व खचरों की सर्विस करने के लिए कारीगर लुप्त हो गए हैंं पुराने समय में कुनिहार के आस पास के क्षेत्र में घोड़े की नाल लगाने के लिए बहुत से कारीगर हुआ करते थे परंतु आज पूरे अर्की क्षेत्र में सिर्फ 1 कारीगर हैं जिसने अपना पुश्तैनी काम सीखा और आज ये काम इनकी आजीविका का सहारा है। कमलेश धीमान पुत्र स्व नरेश धीमान उर्फ बबला ने बताया कि हमारे बुजुर्ग लगभग 130 वर्षों से यह काम करते आ रहे हैं परिवार की वो चौथी पीढ़ी है जिसने इस पुश्तैनी काम को जिन्दा रखा है। कमलेश धीमान पूरे अर्की क्षेत्र में धोडे के पैैरों में नाल लगाने जाते हैं उन्होंने बताया कि दो घोड़ों के पैरों में नाल लगाने के लिए उन्हें मात्र 400 रुपये मिलते हैं । जिससे वह अपने घर की आजीविका चलाते हैं। कमलेश धीमान अकेला कमाने वाला है उनके घर में उनकी मां, पत्नी व छोटा बच्चा है
कमलेश का कहना है कि इस काम से घर का गुजारा नहीं चलता महीने में मुश्किल से 10 या 12 दिन काम होता है। अपने बुजुर्गों की कला लुप्त न हो इसलिए काम करता हूँ। कभी समय था जब इस कार्य में कमाई होती थी परंतु आज गांव - गांव में सड़कों ने लोगों का काम आसान कर दिया है। इसलिए घर का गुजारा चलाने के लिए इस काम के साथ साथ ध्याडी भी लगानी पडती है।पुराने समय में कुनिहार के व्यापारी (आडतियों) का सारा सामान खचरों पर आता था परंतु आज समय बदल गया है।
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