वर्तमान मशीनी युग में लुप्त हो रहे घराट...

 लोग आज पौष्टिक तत्वों से भरपूर घराट के आटे

का स्वाद पुरी तरह से भूल चुके हैं। जिसके चलते घराट चलाने वालों को अपनेपरिवार का पेट पालने के लिए घराट का पिस्सा हुए आटे को लोगों के घर घरजाकर बेचना पड़ रहा है।  पुराने समय में आटा पीसने के लिए मशीनें आदि नहीं होती थी ।इसलिए  आटा पीसने के लिए विशेष विधि की खोज की गई थी। पानी के तेज बहाव से चलने वाली चक्की से आटे को पिस्सा जाता था।  जिसको हम घराट कहते थे।  

कुनिहार क्षेत्र में अब एक ही घराट है वह भी अपनी अंतिम सांसे ले रहा है । गांव जाडली के रहने वाले मुनीलाल पुत्र स्व0 लक्ष्मी सिंह  इस विरासत को जीवंत रखने के लिए अकेले जद्दोजहद कर रहे हैं उनके

बुजुर्ग लगभग 130 सालों से घराट चलाते आ रहे हैं आज की पीढ़ी इस काम को
घाटे का सौदा मान रही है।  वह मजदूरी करके परिवार का पेट पालने को तब्बजो
दे  रहे हैं।
                    

 कुनिहार क्षेत्र के आधा दर्जन से ज्यादा घराट हुए बंद

ऐसे गांव जाडली, आउना, रिहालकुंडी, जाबलु, गम्बरपुल आदि में कई  घराट 
चलते थे। एवं गांव के सभी लोग खड्ड का पानी को मोड  कर  कूल द्वारा पानी के बहाव से घराट चलाते थे।  तथा गेहूं एवं मक्की को पिस्सा करते थे। परन्तु अब सभी परिवार घराट का काम छोड़कर मजदूरी करने के लिए मजबूर हो गए हैं। घराट वालों ने बताया कि उन्हें घराट का आटा घर घर जाकर बेचना पड़ रहा है।  क्योंकि लोग उनके पास आटा पीसाने के लिए आते ही नहीं है।
                      

 बारिश के पानी के कारण भारी नुकसान

मुनिलाल ने बताया कि  जब भारी बारिश होती है तब घराटों को काफी नुकसान 
झेलना पडता है  एवं हम खुद ही घराट की रिपेयर आदि करते हैं। उन्होंने बताया पानी के कारण जहां घराटों को नुकसान पहुंचा वहीं घरों को भी खतरा बन जाता है 



 1 दिन में 50 से 60 किलो आटा पीसता है घराट


मुनिलाल के अनुसार  खड़ के पानी के बहाव को कूल द्घा्वा घराट की तरफ मोड़ा जाता है  और घराटो  के भीतर से पानी को पंखों पर डाला जाता है जिससे पंखे  तेजी से घुमने लगते हैं जिस के कारण घराट की चक्की चलती है।उन्होंने बताया कि 1 दिन में 50 से 60 किलो तक आटा पीसा  जाता है क्योंकि चक्की में दाने धीरे धीरे गिरता है।

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