हिमाचल प्रदेश सोलन जिला के कुनिहार में उत्तरवाहिनी नदी में अद्भुत चमत्कारी हनुमान शीला जो समय परिवर्तन के साथ साथ भूमि के अंदर तो कभी भुमि के सतह पर आ जाती है।





पौराणिक कथाओं में जिस उत्तरयाणी गंगा अर्थात उत्तर वाहिनी नदी का वर्णन किया गया है।  उस नदी के दर्शन वास्तविक में सोलन,  कुनिहार, बिलासपुर,  सड़क से  गुजरते हुए सहसा हो जाते हैं।उक्त उत्तरवाहिनी गंगा नदी को प्रारंभ से अंत तक उत्तर दिशा की ओर निरंतर बहते हुए देखा जा सकता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार उत्तरयानी गंगा में स्नान करने से चर्म रोगों का अंत होता है। जब किसी के शरीर पर फोड़े फुंसियों हो जाते हैं तो मान्यता है कि यदि उत्तरवाहिनी  नदी में स्नान करवाया जाए तो चर्म रोग ठीक हो जाते हैं । बहुत से लोगों को इसका लाभ पहुंचा है इस उत्तर वाहिनी नदी को गंबर नदी के नाम से भी जाना जाता है।  उत्तरायणी गंगा का महत्व केवल पुरानी कथाओं के आधार पर ही नहीं बल्कि इस पौराणिक कथाओं में जिस उत्तरयाणी गंगा अर्थात उत्तर वाहिनी नदी का वर्णन किया गया है।  उत्तरवाहिनी गंगा नदी को प्रारंभ से अंत तक उत्तर दिशा की ओर निरंतर बहते हुए देखा जा सकता है।





बुजुर्गों के अनुसार इस स्थान पर हमेशा बंदरों को बैठे देखा गया था।  यह चट्टान जब पूरी तरह सतह पर आई तो लोग यह देखकर दंग रह गए कि इस चट्टान  पर बजरंगबली के साक्षात मूर्ति प्राकृतिक रूप से उभरी हुई थी। जिससे पहचानने के लिए किसी तर्क की आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि इस बड़ी काली चट्टान पर मूर्ति वाला हिस्सा सिंदूरी रंग का पूर्ण तथा सुंदर और स्पष्ट भाग था। 


प्रकृति के इस चमत्कार को देखकर लोग हैरान थे। उस चट्टान का नाम कालांतर से ही हनुमान शीला के नाम से प्रख्यात हो गया। स्थानीय  लोगों के अनुसार जो भी इस हनुमान शीला पर सच्चे मन से कुछ भी मांगता है वह हमेशा पूरी होती है। इस हनुमान शीला तक पहुंचने के लिए सड़क ना होने से बहुत कम लोगों को शीला के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
समय परिवर्तन के साथ साथ लोग बताते हैं कि यह हनुमान शीला जिस पर बजरंगबली की साक्षात मूर्ति बनी है कभी भूमि के अंदर चली जाती है तो कभी फिर सतह पर आ जाती है।  इस शीला पर एक विशेष प्रकार का घास उगा हुआ है जो 4 से 5 फुट लंबा है और गर्मी सर्दी में यह घास आधा हरा आधा सुखा बना रहता है।  यह घास भी इस शीला के अलावा पूरे इलाके में कहीं भी देखने को नहीं मिलता। जिसे बुजुर्गों ने बजरंग बली की पूंछ का नाम दिया है।  



आज बजरंगबली शीला का प्रभाव दूर दूर तक फैल रहा है।  हर वर्ष चैत्र नवरात्रों पर यहां पर भजन कीर्तन के साथ साथ भंडारे का आयोजन भी किया जाता है।  पुराने  कथा अनुसार इस  शीला बारे में लोग बताते हैं कि राम अवतार के  समय रावण से युद्ध के समय जब लक्ष्मण को मेघनाथ का तीर लगा था।  तो संजीवनी बूटी लाने के लिए हनुमान जी लंका से हिमालय की और यहां से होकर गए थे।  मिथक के अनुसार उनका एक पैर यहां पड़ा था दूसरा पैर  थला की पहाड़ी पर है। व तीसरा पैर सायरी में चौथा शिमला क्षेत्र के जाखु में पड़ा था। इन सभी स्थानों पर बजरंगबली के स्थान बने हुए हैं।
जहां पर लाखों लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण हो रही है।स्थानीय निवासी सुभाष शर्मा, शादीराम, चमन ठाकुर, केसर सिंह, रविंद्र चौधरी,दीवानचंद व आस पास के गांव वालों ने कहा कि यह शिला बहुत ही शक्तिशाली है जिसमें साक्षात बजरंग बली विराजमान है और शिला पर उगी घास बजरंग बली की पूंछ के नाम से प्रसिद्ध हैं।जोकि हमेशा आधी हरी व आधी सुखी रहती है। स्थानीय लोगों के अनुसार लोगों की मनोकामनाएं भी यहां से पुरी हुई है।

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