लोक संगीत के लिए राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित स्वर्गीय हेतराम तनवर उस्ताद बूटा खां के संगीत के थे कायल ।

पाकिस्तान के लाहौर में भी अपनी आवाज का मनवा चुके हैं लोहा।



हिमाचल प्रदेश के अस्तित्व में आने से पूर्व कुनिहार एक छोटी सी रियासत थी।जम्मू अखनूर से आये सूर्यवँशी शासकों में अंतिम शासक राणा हरदेव सिंह को लोक गायिकी को प्रोत्साहित करने का श्रेय जाता है।उस समय कुनिहार क्षेत्र के स्व० हेत राम तनवर ने लोक गायिकी में रियासत का नाम रोशन किया था व लोक गायिकी में राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त किया।पाकिस्तान के लाहौर में भी अपनी आवाज का लोहा मनवा चुके तनवर को अपने अंतिम समय मे इस बात का मलाल रहा कि आखिर यह सरहदे बनी ही क्यों। 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति स्व०डॉ०अब्दुल कलाम ने तनवर को लोक संगीत व शास्त्रीय गायकी को जीवंत रखने के लिए राष्ट्रपति अवार्ड से नवाजा  था।कुनिहार रियासत में कोई भी बड़ा कलाकार आता तो हेत राम के माता पिता को ढोल नगाड़े को बजाने के लिए विशेष तौर पर बुलाया जाता था।होश सम्भालते ही हेत राम तनवर भी इन महफिलों में शिरकत करने लगे और यंही से उनके जीवन मे एक बदलाव आया।



जानकारी के अनुसार 1940 में राणा हरदेव सिंह के दरबार मे उस्ताद बूटा खां की महफ़िल सजती थी और ढोलक-नगाड़ो से संगीत दिया जाता था।स्व०हेत राम भी उस्ताद बूटा खां के संगीत के कायल थे व उन्ही की महफिलों में गाते हुए उनकी रुचि संगीत के प्रति बढ़ने लगी। जानकारी के अनुसार उस समय अयोध्या से महंत सुख राम की पार्टी कुनिहार में रामलीला करने आती थी व तनवर उस पार्टी से जुड़कर मात्र 30 रु महीने की बगार पर काम करने लगे।कुनिहार रियासत के आसपास तत्तापानी,धुन्धन,भज्जी आदि रियासतों में अपनी गायन कला को निखारने लगे।धीरे धीरे पंजाब की सरगोदा,गुजरावाला,शेखपुर आदि रियासतों में अपनी गायकी का लोहा मनवाया।लोक गायिकी में ख्याति मिलने पर आकाशवाणी शिमला ने बिना किसी ऑडिशन के उन्हें आर्टिस्ट बनाया व उनकी गायिकी गावं व शहरों तक पहुंच गई, जिसे लोगो ने बहुत पसंद किया। एक जनवरी 1932 को



कुनिहार हाटकोट में जन्मे हेत राम तनवर इंडियन आइडल फेम कृतिका तनवर के दादा थे। तनवर ने राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हिमाचली फोक को ख्याति दिलाई ।उनकी गाई गंगी, शंकरी, मोहणा ,बामणा रा छोहरूवा व ओ गम्भरीये खाणा पीणा नन्द लेणी हो आज भी हर किसी की जुबान पर आ जाती है। सोलन जिला के कुनिहार से संबंध रखने वाले इस लोक गायक ने अपनी पत्नी के देहांत के बाद शिमला स्थित माहूंनाग मंदिर में शरण ली।जनवरी 2016 में 84 वर्ष की आयु में उनका निधन अपने पैतृक गावं हाटकोट कुनिहार में हुआ।उनके निधन से लोक गायिकी व सांस्कृतिक क्षेत्र में मातम छा गया था। उनकी इस लोक गायकी को उनके परिवार वालों ने आज भी सहेज कर रखा है। आकाशवाणी शिमला से उनके बेटे प्रेम सिंह, बहू मीनाक्षी ,और पोते राहुल व पोती कृतिका की आवाज सुनने को मिलती है,जो कि कुनिहार क्षेत्र के लिए बहुत ही सम्मान की बात है।

©Akshresh Sharma

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने

संपर्क फ़ॉर्म