भांग पिने के शौकीन आखिर क्यों धुंए के कश के साथ लेते हैं शिव शम्भू का नाम


भोलेनाथ की नकल करने वालों से एक प्रश्न है कि अगर भोलेनाथ जो करते थे, ठीक वही तुम्हें भी करना है, तो तुम रोज जहर क्यों नहीं पीते। भगवान ने तो संसार के सबसे खतरनाक विष से भरा पूरा घड़ा पी लिया था। तुम उतना नहीं, तो आधा ग्लास ही पी लो। एक चम्मच ही पी लो। भगवान भोलेनाथ महीनों ध्यान में बैठे रहते थे। हिलते तक नहीं थे, तुम कुछ घंटे ही उस मुद्रा में बैठकर दिखाओ। अपने गलत नशे  को भगवान भोलेनाथ से मत जोड़ो। भोले शंकर ने  अगर भांग का सेवन किया होगा तो उसके पिछे रहस्य या सृष्टि की भलाई रही होगी। 


क्या कभी सोचा है कि भगवान और भांग के बीच क्या संबंध हो सकता है? जी हाँ, दोनों का आपस में संबंध तो है ही, तभी दोनो का नाम जुड़ता है। भांग भारत में कई सदियों से चली आ रही है। कुछ मान्यताओं के अनुसार भांग पांच पवित्र पौधों में से एक हैं और इस खुशी, सुख का स्रोत माना जाता है। पौराणिक कहानियों के आधार पर  समुद्र मंथन के दौरान अमृत से पहले  विष निकला, जिसे भगवान शंकर ने अपना भोग बनाया। विष पीने से उनकी स्थिति बिगड़ गयी और उसके प्रभाव को शांत करने के लिए भगवान शिव को भांग दी गई। इसके बाद से उनके साथ भांग का नाता जुड़ गया।  
भोलेनाथ को नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। तर्क और दर्शन के आधार पर भगवान शंकर को हिन्दू धर्म में संहारक की उपाधि दी गई है। शिव की  भूमिका महाकाल के साथ काल में भी अहम है। समाज के हाशिए पर पड़े लोगों की पहचान बने शिव को उन चीजों से जोड़ा जाता है, जो समाज में खुल कर सामने नहीं आतीं। इसका एक उदाहरण भांग है। इसलिए भगवान शिव के साथ बहुत सारी ऐसे तर्क जुड़े हैं जो उन्हें धर्म में एक विशिष्ट जगह देते हैं। बस साथियों इतना ध्यान रखें कि मकसद आहत करने का नहीं, बल्कि उन तर्कों को खंगालने का था जिन पर शायद आपने पहले कभी न सोचा हो। 

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