सोलन जिला अर्की के बाड़ीधार पर्वत पर सुनाई देती थी शिव की धुने, जिसे सुनकर शिव से मिलने पंहुचे पांडव बाडीधार

भोले शंकर से पांडवों का भव्य मिलन का प्रतीक है अर्की जनपद का बाड़ीधार मेला



सोलन जिला के अर्की उपमंडल के तहत प्राचीन ऐतिहासिक स्थल बाड़ीधार एक शक्ति पीठ के रूप में विख्यात है।बाड़ीधार का प्राचीन इतिहास पांड्वो से जुड़ा हुआ है। अर्की क्षेत्र का प्रसिद्ध बाड़ीधार महाभारत काल की पौराणिक कथाओं को संजोए हुए है और ये बाड़ादेव(युद्धिष्ठर) की आस्था भरी पौराणिक कथाएं लोगों के जीवन में भी अपना अलग महत्व रखती है। 



एक जनश्रुति के अनुसार कहा जाता है,कि आषाढ़ माह में आयोजित होने वाले बाड़ीधार मेले में पांडवों और भोले शंकर के मिलन का भव्य आयोजन होता है। इस आयोजन के माध्यम से नई पीढ़ी को क्षेत्र के इतिहास से अवगत करवाया जाता है तथा उन्हें अपने पूर्वजों से विरासत में मिली परंपराओं को निभाने का पाठ भी पढ़ाया जाता है। देव भूमि बाड़ी धार के बाड़ी मेले में जो आता है बाड़ा देव उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। यही कारण  है कि श्रद्धालु दूर-दूर से इस मेले को देखने के लिए यहां पहुंचते हैं। इस मेले की पूर्व संध्या पर इस स्थान पर जागरण का आयोजन होता है।



 एक किंवन्दन्ति के अनुसार पांडव जब अपने अज्ञातवास में विभिन्न जगहों पर गुफा व कंदराओं में अपने आप को छुपाते फिर रहे थे तो देव भूमी  में भोले शंकर को ढूंढते हुए हिमाचल की पावन धरा पर पहुंच गए। हिमालय भोले शंकरपर  का स्थान है व  पौराणिक ग्रन्थों में ऐसा वर्णन है।यहां की पर्वत मालाएं शिवालिक अर्थात शिव की जटाएं कही जाती हैं। जैसे ही उन्हें पता चला कि बाड़ी की धार पर्वत पर शिवजी की धुन बज रही है तो शिवजी के दर्शन की इच्छा लेकर पांडव वहां गए। दो दिन तथा तीन रात वहां प्रतिदिन जाते रहे। उन्हें शिवजी की धुन तो सुनाई दी, पर शिवजी नहीं मिले। देवाज्ञा से उन्हें वहीं प्रतिष्ठित हो जाने का आदेश हुआ। पांडवों को आकाशवाणी हुई कि आज से यह स्थान ज्येष्ठ युधिष्ठिर के नाम से जाना जाएगा और यह स्थान बाड़ी की धार के नाम से विख्यात होगा। पांडवों को भी अन्य स्थान मिले और वे उन स्थानों पर पूजे जाते हैं। कालान्तर में वहां बाड़ा देव की पूजा होने लगी।

भूतों से लोगों की रक्षा करते बाड़ा देव



कहते हैं कि पहाड़ी की दूसरी तरफ भूतों का साम्राज्य हुआ करता था वहां पर भूतों के लिए प्रारम्भ में नरबलि दी जाती थी,जो की बाद में पशुबलि मे परिवर्तित हो गई। बाड़ी की धार में बहुत बड़ा उत्सव होता है जहां पांचों पांडव अपने अपने स्थानों से आकर बाड़ा देव से मिलते हैं। वहां रात को कोई नहीं रुकता था। अगर कोई रुक भी जाता तो बाड़ा देव भूतों से लोगों की रक्षा करते थे। स्थानीय लोगों के अनुसार एक बार मेले में गया व्यक्ति जिज्ञासावश कि रात को यहां क्या होता होगा, ऐसा सोचकर वहां रुक गया और एक वृक्ष पर चढ़ गया जब अंधेरा घिरने लगा तो वहां भूतों का तांडव शुरू हो गया । वे लोगों द्वारा दी गई बलियों का भक्षण करने लगे। यह देख कर वह व्यक्ति भयभीत हो गया और चिल्लाने लगा। भूत उसको डराने लगे तो उसने बाड़ा देव से प्रार्थना की कि हे देव आप मुझे इस विपत्ति से बचा लें मेरी रक्षा करें। उसी समय वह वृक्ष वहां से उखड़ा और दयोथल नामक स्थान पर स्थापित हो गया, जो आज भी वहां है। उसके पश्चात बाड़ा देव आसपास के क्षे़त्र में विख्यात हो गए। यहां हर साल मेला लगता है जो बाड़ी का मेला के नाम से जाना जाता है। बाड़ादेव आज भी गुरों के माध्यम से लोगों की समस्याओं का निवारण करते हैं।

@akshresh sharma

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