मनमोहक है कुनिहार की वादियां व धार्मिक स्थल , पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाएं सिर्फ ध्यान देने की है जरूरत

कुनिहार का मनमोहक दृश्य 



कुनिहार क्षेत्र चारों तरफ़ से मनमोहक पहाडियों से घिरा हुआ है और कुनिहार का समस्त क्षेत्र समतल है जो अपने में बहुत से रहस्य छुपाकर बैठा है। कुनिहार के चारों ओर से नदीयां बहती है जोकि आपस में मिलकर एक हार यानी माला का रूप लेती है जिसके बीच में कुनिहार बसा हैं। नदियों को पहाड़ी भाषा में कुणी कहा जाता था जोकि हार का रुप लेती है कुणी और हार को मिलाकर कुनिहार का नाम दिया गया था।  आजादी  से पहले कुनिहार अंग्रेजों की पहली पसंद थी यंहा अंग्रेज रहा करते थे इस लिए आस पास के क्षेत्र के लोगों ने कुनिहार को छोटी विलायत का नाम दिया। 

 यूं तो कुनिहार का नाम छोटी विलायत के नाम से जाना जाता है। लेकिन आपको शायद ही पता हो कि कुनिहार में कई ऐसे स्थल भी है यदि उन पर थोड़ा ध्यान दिया जाए तो यह शहर पर्यटन स्थल के रूप में तब्दील हो सकता है लेकिन अफसोस इस बात का है कि हर बार इस क्षेत्र  से जो भी विधायक चुन कर आते हैं वो चुनाव जीतने के बाद शहर के प्रति उदासीन रवैया पाते हैं जिसके कारण यहां की ऐतिहासिक  स्थल धूल फांक रहे है आइए एक नजर डालते हैं कुनिहार के दर्शनीय स्थलों पर।

शिव तांडव गुफा कुनिहार

सोलन जिला के कुनिहार में भगवान भोलेनाथ की शिव तांडव गुफा सालों से श्रद्धा और भक्ति भाव का केंद्र बनी हुई है गुफा के अंदर गाय के थन के आकार की चट्टानों से कभी शिवलिंग पर दूध गिरता था। लेकिन बाद में पानी गिरना शुरू हो गया मान्यता है कि यहां पर शिव भगवान ने कठिन तप किया था।  शिव का यह स्थल धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित हो रहा है यहां शिवरात्रि पर श्रावण मास के महीने में मेला लगता है इस गुफा के अंदर ही प्राचीन काल से शिवलिंग स्थापित है यहां शिव परिवार के साथ साथ नंदी की शीला विस्थापित है बताया जाता है कि गुफा से एक रास्ता भी होता था।  लेकिन अब बंद हो गया है यह शिव गुफा पूर्व दिशा की ओर है। यहां पर शिवलिंग शेषनाग व नंदी की स्मृति चिन्ह है शिव तांडव गुफा  धार्मिक पर्यटन  स्थल के रूप  में विकसित हो रही है लोगों के जन सेवा से यहां पर कई विकास कार्य हो रहे हैं।


शिव मंदिर तालाब व राजा का महल


शिव मंदिर तालाब में आज भी घोड़े टापों और जूतों की आवाज सुनाई देती है  लोगों के यकीन में रियासत के राजा राय आनंद देव सिंह आज भी अपनी रियासत में  लोगों की रक्षा के लिए चक्कर लगाते हैं आज भी स्वर्गीय राजा आनंद देव सिंह के घोड़ों के टापू की आवाजें सुनाई देती है ऐसा लगता है कि मानो कि आज भी कोई देर रात को यहां के स्थानीय बाजार से  शिव मंदिर तालाब तक प्रहरी की तरह रखवाली कर रहा हो।  कुनिहार के राजा राय आनंद देव सिंह के  वंशजों ने उनकी याद में मंदिर रूप स्मारक भी बनाया गया है  बताया जाता है कि साल 1799 मैं नालागढ़ और बागड़ रियासत एक हो गए थे दोनों रास्तों ने कुनिहार रियासत पर एक नाकाम  कोशिश की थी शिवरात्रि के दिन राजा राय आनंद देव सिंह पर धोखे से हमला कर उन्हें गोली मार दी गई थी घायल होने के बावजूद भी राजा वह उनके साथियों ने मिलकर दुश्मनों  से काफी देर तक लोहा लिया लड़ते-लड़ते राय देव आनंद सिंह घोड़े से एक जगह गिर गए और वीरगति को प्राप्त हुए जहां उनका शरीर गिरा वहीं उनका अंतिम दाह संस्कार किया गया। 1799-1947 तब कुनिहार रियासत में शिवरात्रि पर्व मनाए जाने पर प्रतिबंध था कुनिहार रियासत के 388 पीढ़ी के राणा संजय देव सिंह आज भी अपने पुश्तैनी धरोहरों को संजोए हुए हैं आज भी आज दरबार कुनिहार में कई पुरातन पांडुलिपि राजाओं के समय के हथियारों  और दस्तावेजों को देखने के लिए कई राज्यों से लोग आते जाते रहते हैं


मंगला माता मंदिर


कुनिहार के साथ लगती कोठी पंचायत के नमोल गांव में मंगला माता का भव्य प्राचीन मंदिर है जहां दुर दुर से लोग दर्शन के लिए  भक्त आते हैं भक्तों के अनुसार जो भी यहाँ सच्चे मन से कुछ मागते हैं उनकी मनोकामना अवश्य पुरी होती है।

दानो देव मंदिर


कुनिहार क्षेत्र को दानो देव भुमि के नाम से भी जाना जाता है लोगों के अनुसार दानो देव प्रेहरी की तरह हर रोज़ कुनिहार क्षेत्र की परिक्रमा करते हैं और क्षेत्र की क्षेत्रपाल की तरह रक्षा भी करते हैं कुनिहार के समस्त क्षेत्र वासियों का कुल देव भी दानो देव ही है। जिसका भव्य मन्दिर कुनिहार के गांव परम्याणी में स्थित है। 


बृजेश्वर देव गम्बरपुल


कुनिहार से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बृजेश्वर देव स्थल आस्था का केंद्र है बृजेश्वर देव प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में दयोथल से गोपनीय मार्ग से आते आराध्य शिव को पूजते और लौट जाते। जनश्रुति  के आधार जब बृजेश्वर देवता की पूजा का रहस्य आम जनता तक पहुंचा तो लोगों में   जिज्ञासा हुई और लोगों का वहां पर आना शुरू हुआ।  आज बृजेश्वर देव लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है उस मंदिर पर जाने के लिए लोहे के पुल से गुजर कर जाना पड़ता है जो कि 1923 में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था।   बृजेश्वर मंदिर का नजारा पर्यटन की दृष्टि से बहुत अद्भुत है।

कुनिहार एक केन्द्र बिन्दु है यहां से 15 किलोमीटर की दूरी पर बाघल रियासत है और बाघल रियासत के अर्की क्षेत्र में भी बहुत से धार्मिक दर्शनीय स्थल हैं जैसे लुटरू महादेव, मुटरू महादेव व सकनी आदि। लगभग 38 किलोमीटर दूरी पर  शिमला  35 किलोमीटर सोलन तथा 55 किलोमीटर की दूरी पर नालागढ़ है।अगर पर्यटन की दृष्टि से देखा जाए तो कुनिहार क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। 

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