नंगेली का नाम केरल के बाहर शायद किसी ने न सुना हो।किसी स्कूल के इतिहास की किताब में उनका ज़िक्र या कोई तस्वीर भी नहीं मिलेगी।लेकिन उनके साहस की मिसाल ऐसी है कि एक बार जानने पर कभी नहीं भूलेंगे, क्योंकि नंगेली ने स्तन ढकने के अधिकार के लिए अपने ही स्तन काट दिए थे।
केरल के इतिहास के पन्नों में छिपी ये लगभग सौ से डेढ़ सौ साल पुरानी कहानी उस समय की है जब केरल के बड़े भाग में ब्राह्मण त्रावणकोर के राजा का शासन था।जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी थीं और निचली जातियों की महिलाओं को उनके स्तन न ढकने का आदेश था।उल्लंघन करने पर उन्हें 'ब्रेस्ट टैक्स' यानी 'स्तन कर' देना पड़ता था।
केरल के श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय में जेंडर इकॉलॉजी और दलित स्टडीज़ की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. शीबा केएम बताती हैं कि ये वो समय था। जब पहनावे के कायदे ऐसे थे कि एक व्यक्ति को देखते ही उसकी जाति की पहचान की जा सकती थी। "ब्रेस्ट टैक्स का मक़सद जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना था।ये एक तरह से एक औरत के निचली जाति से होने की कीमत थी।इस कर को बार-बार अदा कर पाना इन ग़रीब समुदायों के लिए मुमकिन नहीं था।
केरल के हिंदुओं में जाति के ढांचे में नायर जाति को शूद्र माना जाता था जिनसे निचले स्तर परखग, एड़वा और फिर दलित समुदायों को रखा जाता था।
कर मांगने आए अधिकारी ने जब नंगेली की बात को नहीं माना तो नंगेली ने अपने स्तन ख़ुद काटकर उसके सामने रख दिए। लेकिन इस साहस के बाद ख़ून ज़्यादा बहने से नंगेली की मौत हो गई। बताया जाता है कि नंगेली के दाह संस्कार के दौरान उनके पति ने भी अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी।
उन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि सारी औरतों के लिए ये कदम उठाया था। नंगेली आपकी अमर गाथा लिखी जाएगी सुनहरे अक्षरो मे मनुवाद और ब्राह्मणवाद का यह ऐसा कर्कश दृश्य था कि एक औरत को उसकी जाती के आधार पर उसके स्तन तक को न ढकने दिया हो सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते है।
केरल के इतिहास के पन्नों में छिपी ये लगभग सौ से डेढ़ सौ साल पुरानी कहानी उस समय की है जब केरल के बड़े भाग में ब्राह्मण त्रावणकोर के राजा का शासन था।जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी थीं और निचली जातियों की महिलाओं को उनके स्तन न ढकने का आदेश था।उल्लंघन करने पर उन्हें 'ब्रेस्ट टैक्स' यानी 'स्तन कर' देना पड़ता था।
केरल के श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय में जेंडर इकॉलॉजी और दलित स्टडीज़ की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. शीबा केएम बताती हैं कि ये वो समय था। जब पहनावे के कायदे ऐसे थे कि एक व्यक्ति को देखते ही उसकी जाति की पहचान की जा सकती थी। "ब्रेस्ट टैक्स का मक़सद जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना था।ये एक तरह से एक औरत के निचली जाति से होने की कीमत थी।इस कर को बार-बार अदा कर पाना इन ग़रीब समुदायों के लिए मुमकिन नहीं था।
केरल के हिंदुओं में जाति के ढांचे में नायर जाति को शूद्र माना जाता था जिनसे निचले स्तर परखग, एड़वा और फिर दलित समुदायों को रखा जाता था।
कर मांगने आए अधिकारी ने जब नंगेली की बात को नहीं माना तो नंगेली ने अपने स्तन ख़ुद काटकर उसके सामने रख दिए। लेकिन इस साहस के बाद ख़ून ज़्यादा बहने से नंगेली की मौत हो गई। बताया जाता है कि नंगेली के दाह संस्कार के दौरान उनके पति ने भी अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी।
उन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि सारी औरतों के लिए ये कदम उठाया था। नंगेली आपकी अमर गाथा लिखी जाएगी सुनहरे अक्षरो मे मनुवाद और ब्राह्मणवाद का यह ऐसा कर्कश दृश्य था कि एक औरत को उसकी जाती के आधार पर उसके स्तन तक को न ढकने दिया हो सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते है।
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