जिला सोलन का मलोण किला गोरखा किला के नाम से है विख्यात

1800 ईसवीं में राजा ईश्वर चन्द नालागढ़ रियासत के राजा थे व मलोण किले पर भी इन्ही का आधिपत्य हुआ करता था


मलोण किला जिला सोलन में गोरखा किला के नाम से विख्यात मलोण किला बिलासपुर सीमा के पास होने के कारण मलोण किले को  बिलासपुर के माध्यम से जाना जा सकता है।शिमला-बिलासपुर हाइवे द्वारा जिला सोलन के इस प्रख्यात किले तक पहुंचा जा सकता है। ब्रह्मपुखर से पहले जयनगर सड़क मार्ग से बाई फरकेशन दयोथ-मैलथी-जामली रोड से होते हुए किले तक पहुंचा जा सकता है। मालौन गावं मैठी लोहारघाट मार्ग पर है और मालौण का किला गाँव के ऊपर ऊंची चोटी पर है।किले तक पहुंचने के लिए कच्ची सर्पीली सड़क या फिर दिलचस्प ट्रेकिंग मार्ग का रोमांच लेते हुए पहुंचा जा सकता है।



किला ऊंची पहाड़ी पर विशाल वॉच-टॉवर(दुश्मन पर नजर रखने के लिए ऊंची प्राचीर) प्रकार की संरचनाओं के साथ लगभग 2 बीघा भूमि में फैला हुआ है। परिसर में एक काली मंदिर है जो इसे एक प्रकार का सुखदायक व फलदायक स्पर्श प्रदान करता है। मंदिर के अंदर मोर के आकार में एक शानदार पेडल सरल मंदिर की सुंदरता को जोड़ता है। राजा के समय से हनुमान, भैरव और अन्य देवताओं की मूर्तियों सहित एक बाघ की प्राचीन मूर्ति भी विद्यमान हैं।



मालौण का शानदार इतिहास रहा है। गोरखो व अंग्रेजो के बीच युद्ध हुआ था।सर डी ओचर्लोनी ने गोरखो को मालौन के पास लोहार घाट में एक भयंकर युद्ध में हराया।इस दौरान अमर सिंह थापा के विश्वशनीय शूरवीर भक्ति थापा युद्ध मे मारा गया व गोरखा सैनिक डर कर यंहा से भाग गए।जानकारी के अनुसार अमर सिंह थापा ने अंग्रेजो के साथ सन्धि कर ली व अपने पुत्र रणजोर सिंह के साथ सुरक्षित नेपाल चला गया।इस विजय के साथ सतलुज घाटी व शिमला की पहाड़ी रियासतों पर अंग्रेजो का प्रभुत्व स्थापित हो गया।
                   
   
 मलोण किले का इतिहास नालागढ़ से भी जुड़ा हुआ है।1800 ईसवीं में राजा ईश्वर चन्द नालागढ़ रियासत के राजा थे व मलोण किले पर भी इन्ही का आधिपत्य हुआ करता था।किले में कालिदास ठाकुर काली माता मंदिर में पुजारी होते थे।यंहा के स्थानीय लोगो के अनुसार व किंवन्दति के अनुसार काली दास ने तीन बार अपना शीश काट कर चढ़ाया था,परन्तु माता की कृपा से वे हर बार जीवित हो जाते थे।



नालागढ़ रियासत के राजा को जब इस प्रकरण का पता चला तो उन्होंने पुजारी काली दास से माँ काली के दर्शनों की फरियाद कर डाली।राजा के आदेशानुसार  पुजारी काली दास ने जब माता को राजा से मिलाने की बात स्वीकार करते हुए जब नालागढ़ में माता का आह्वाहन किया तो माता सिंह पर सवार होकर आई तो उस दौरान ऐसी भयंकर गर्जना व हवा के डर से राजा ने पुजारी को माँ के दीदार से मना कर दिया व पुजारी को कुछ भी मांगने के लिए कहा।इस पर पुजारी ने मलोण सहित दो गावं मांगे।राजाओं के समय से इस परिवार का लगान(मामला) आज भी माफ है।




जिला का एकमात्र मन्दिर है जंहा पर राजपूत पुजारी है व आज भी कालिदास के परिजन इस कार्य को बड़ी ही लग्न व शिद्दत से निभा रहे है।लोगो के अनुसार यंहा की प्राचीर पर बड़ी बड़ी तोपे तैनात थी।एक तोप जब रामशहर की ओर चलाई गई थी तो इतनी जोरदार गर्जना हुई थी कि इस क्षेत्र के आस पास गाभन पशुओं के गर्भ तक गिर गए थे।लड़ाई में इस्तेमाल किये गए तोपो को मलोण किले में रखा गया ,लेकिन अब कुछ वर्ष पहले ही गोरखा ट्रेनिंग सेंटर संग्रहालय सुबाथू ले जाया गया है।

@akshresh sharma

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