हिमाचल प्रदेश शिमला के प्रसिद्ध जाखूमंदिर के मायावी बंदर और रामचंद की सच्ची दोस्ती की कहानी


    (देव तनवर)                                                                                                                                                      
कुत्तों को इंसान का सबसे सच्चा दोस्त कहा जाता है कहते है इंसान, इंसान को धोखा दे सकता है, लेकिन कुत्ते कभी धोखा नहीं देते इंसान भले ही उन्हें दुत्कार दें, पर कुत्ते नही,परन्तु इसी कड़ी में बंदर और इंसान की दोस्ती कुछ हजम नही होती। उन्हें तो सिर्फ हनुमान जी ने भगवान श्री राम के लिए रामसेतु बांध बनाने के लिए काम में लाया गया था,तब से लेकर बंदरों की इज्जत इंसानों की नजर में भगवान से कम नही।
बंदरों को लेकर कुछ लोग कह सकते हैं कि इनकी कुछ नस्लें काफ़ी आक्रामक होती हैं, लेकिन ज़्यादातर बंदर नटखट और  बहुत भोले होते है जो इंसानों से दोस्ती ही करना चाहते हैं. समय-समय पर वो इसको प्रमाणित भी करते रहे हैं.
एक बार उन्होंने किसी के साथ सच्ची दोस्ती कर ली तो मरते दम तक उनका साथ निभाते हैं. वफ़ादारी, ईमानदारी और दोस्ती की ऐसी ही एक मिसाल थी शिमला के जाखू मंदिर के बंदर की दोस्ती
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पुराने बुजुर्गों  के अनुसार  सन् 1942 में शिमला हिमाचल प्रदेश में राम चंद नाम का एक व्यक्ति हुआ करता था.पेशे से  वो एक किसान था और शिमला के साथ लगते क्षेत्र संजोली के नज़दीकी गांव का रहने वाला था जोकि सुबह 4 बजे शिमला स्थित जाखूमंदिर में बंदरों को गुड़ चना खिलाने व हनुमान जी के दर्शन करने जाया  करता था। लोगो के अनुसार राम चंद में हनुमान जी के प्रति बहुत आस्था थी इसलिए उन्होंने ताउम्र शादी ना करने का भी दृढ़ निश्चय कर लिया था।

एक दिन राम चंद रोजाना की तरह संजोली से जाखूमंदिर सुबह 4 बजे जा रहा था  ओर अचानक रास्ते में उसने एक मादा बंदर को तड़पते हुए देखा.जिसको किसी ने खाने में जहर दिया हुआ था उसके स्तन में उसका मासूम सा बच्चा दूध पी रहा था.
राम चंद ने उस बंदर को पानी पिला के बचाने की कोशिश की परन्तु वो मादा बंदर दम तोड चुकी थी उसने उसके बच्चे को अपनी गोद में लिया और जाखुमंदिर में जाकर हनुमान जी को अपना सिर झुकाकर शिश नवाज कर उस बच्चे की सेवा करने का आशीर्वाद मांगा और उसे अपने साथ अपने घर ले गया।

राम चंद ने लगभग 12 वर्ष तक उस बंदर की सेवा की ओर उन दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती भी हो गई थी,वो रोजाना राम चंद के साथ जाखूमंदिर जाया करता था और मंदिर में माथा टेक कर दोनो वापिस घर आ जाया करते थे,लोगो के अनुसार वो बंदर हमेशा राम चंद के साथ देखा जाता ,वो खेत का काम कर रहा हो या बाजार में दूध बेचने जाता वो  बंदर साथ ही जाया करता था।

10 मार्च 1952 को रोजाना की तरह राम चंद सुबह उठा ओर 4 बजे जाखूमंदिर जाने से पहले बंदर को आवाज मारने लगा परन्तु वो न जाने कहां चला गया था तो राम चंद ने अकेले ही मन्दिर जाने का फेसला किया,पर किस्मत को कुछ ओर ही मंजूर था बोलते है जब इंसान की मृत्यु सुनिश्चित होती है
तो उसे कोई भी टाल नहीं सकता, राम चंद मंदिर से वापिस घर की तरफ लोट रहा था तो एक तेज रफ्तार ट्रक द्वारा उसे टक्कर लगी और उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गई, क्या पता बंदर का साथ ना जाना किसी अनहोनी का अंदेशा हो, बंदर रूप में साक्षात हनुमान जी राम चंद के साथ उसकी सुरक्षा में चलते हो, बिना बंदर के वो मंदिर नही जाता तो शायद उसकी जान बच जाती,बोलते है न भगवान जिसकी किस्मत में  जो लिख देता है वो कभी भी टाला नहीं जा सकता।

लोगो के अनुसार जब उसके शव को घर ले कर गये तब वो बंदर अचानक वन्हा आया और राम चंद के शव को देख जोर जोर से चीखने ओर रोने लगा, राम चंद के शव को श्मशान घाट ले जाया गया तब वो बंदर सारा दिन पेड़ पर उदास बैठा रहा और नम आंखो से राम चंद के शव को जलते हुए देखता रहा।गांव वालो ने बताया कि जब वो बंदर राम चंद के घर वापिस आया, तो लोग उसे खाना तो कभी पानी देते परन्तु वो पेड़ पर बैठ नम आंखों से टकटकी लगाए रास्ते को निहारता रहता. कुछ दिन बीते,हफ्ते बीते,ओर कुछ महीने बीत गये वो राम चंद के घर पे बैठा रहता तो कभी उसी के अंगना के पेड़ पे ,धीरे -धीरे लोगो को समझ आने लगा कि वो आम बंदर नहीं है।

गांव वालो ने उसके गले में लाल कपड़ा बांधा ताकि वो जन्हा भी दिखे तो सब उसे पहचान जाए.उस दिन के बाद वो बंदर उस गांव में नही दिखा,परन्तु कुछ गांव वालो के अनुसार जाखूमंदिर की मुख्य मूर्ति के पास वो अक्सर देखा गया था।उसके बाद आज भी उस दिव्य बंदर की झलक गांव वालो को सपनो में आती है,तब से लेकर उस गांव में हनुमान जी के प्रति बहुत आस्था है उसी आस्था को चलते राम चंद के आंगन में हनुमान जी का छोटा सा मंदिर बनवाया गया ,राम चंद और उस बंदर की दोस्ती को आज भी शिमला के लोग याद करते हैं।



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